देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
बुरी आदतें बाद मे और बड़ी हो जाती हैं - प्रेरक कहानी
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
लिङ्गाष्टकम्
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
अर्थ: हे प्रभु वैसे तो जगत के नातों में माता-पिता, भाई-बंधु, नाते-रिश्तेदार सब होते हैं, लेकिन विपदा पड़ने पर कोई भी साथ नहीं देता। हे स्वामी, बस आपकी ही आस है, आकर मेरे संकटों को हर लो। आपने सदा निर्धन को धन दिया है, जिसने जैसा फल चाहा, आपकी भक्ति से वैसा फल प्राप्त किया है। हम आपकी स्तुति, आपकी प्रार्थना किस विधि से करें अर्थात हम अज्ञानी है प्रभु, अगर आपकी पूजा करने में कोई चूक हुई हो तो हे स्वामी, हमें क्षमा कर देना।
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो read more सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।